आस्था से छल करने का फल

नाबालिग से दुराचार के जुर्म में आसाराम को उम्रकैद की सजा उन तमाम आस्था के कारोबारियों के लिये सबक है, जो इसकी आड़ में तमाम गोरखधंधे चलाते हैं। एक पीड़िता के साहस और उसके परिवार का संबल इस जुर्म को अंजाम तक पहुंचाने में कामयाब रहा। अन्यथा जिसके दरबार में सजाधीश शीश नवाते रहे हों, उसके खिलाफ थाने व कोर्ट में खड़े होने का साहस कौन जुटा सकता था। इस केस में नामी वकीलों की फौज भी सच को सामने आने से न रोक सकी। इस मामले में तमाम गवाहों पर प्राणघातक हमले और तीन गवाहों की हत्या के बाद पीड़ित पक्ष का डटे रहना अपने आप में साहस की अनूठी मिसाल है। इस सजा का संदेश तमाम आस्थावान लोगों के लिये भी है कि आस्था अपनी जगह है, मगर आडंबरों के फेर में अंधश्रद्धा खतरनाक है। उ.प्र. के शाहजहांपुर का पीड़ित परिवार इस पंथ का कट्टर समर्थक था और उसने अपने खर्चे पर शाहजहांपुर में पंथ का आश्रम भी बनवाया था। यह सोचकर कि बच्चों को अच्छे संस्कार मिलें। बेटी को छिंदवाड़ा के गुरुकुल में भर्ती कराया था। जिसे बाद में उपचार के बहाने 15 अगस्त 2013 को जोधपुर के मनाई आश्रम में बुलाकर हवस का शिकार बनाने का आरोप अदालत में कलमबद्ध हुआ। इस मामले में 20 अगस्त को दिल्ली के एक थाने में प्राथमिकी दर्ज कराई गई थी। कालांतर इस गंभीर आरोप में आसाराम को गिरज्तार किया गया और दो सितंबर 2013 को न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया। तब उनके समर्थकों ने जमकर उत्पात मचाया था। मगर इस बार शासन-प्रशासन ने सजा सनाने के दिन योजनाबद्ध ढंग से हालात पर नियंत्रण बनाने में कामयाबी हासिल की। मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए जोधपुर सेंट्रल जेल में लगी एससी-एसटी विशेष अदालत ने आसाराम को उम्रकैद तथा छिंदवाडा छात्रावास की वार्डन शिल्पी व संचालक शरतचंद्र को बीस-बीस साल की सजा सुनाई। घटना के वक्त ज्योंकि छात्रा नाबालिग थी, अत-आसाराम को धारा 376 के अलावा पोस्को के तहत सजा दी गई। निसंदेह जिस व्यक्ति से लाखों लोगों की आस्था जुड़ी हो, उसका अपराध अक्षज्य है। फिर जिस व्यक्ति के संरक्षण में नाबालिग हो. वही उसका ही शोषण करे तो मामला और गंभीर हो जाता है। अभी आसाराम की मुश्किलें खत्म नहीं होती ज्योंकि गुजरात में एक महिला ने यौन उत्पीड़न का मामला दर्ज करवाया है, जो न्यायालय में विचाराधीन है